Tuesday, 11 February 2014

श्मशान और अघोरियों का खास रिश्ता

 अघोरियों का नाम सुनते ही न जानें क्यों दिमाग में एक डरावना चित्र उभर आता है। अघोरियों का जीवन जितना कठिन है, उतना ही रहस्यमयी भी। अघोरियों की साधना विधि सबसे ज्यादा रहस्यमयी है। उनकी अपनी शैली, अपना विधान है, अपनी अलग विधियां हैं। अघोरी उसे कहते हैं जो घोर नहीं हो। यानी बहुत सरल और सहज हो। जिसके मन में कोई भेदभाव नहीं हो। अघोरी हर चीज को समान भाव से देखते हैं। वे सड़ते जीव के मांस को भी उतना ही स्वाद लेकर खा सकते हैं, जितना स्वादिष्ट पकवानों को स्वाद लेकर खाया जा सकता है। 

अघोरियों की दुनिया निराली है। वे जिस पर प्रसन्न हो जाएं, उसे सब कुछ दे देते हैं। अघोरियों की कई बातें ऐसी हैं, जिसे सुनकर आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे। हम आपको अघोरियों की दुनिया की कुछ ऐसी ही बातें बता रहे हैं, जिन्हें पढ़कर आपको एहसास होगा कि वे कितनी कठिन साधना करते हैं। साथ ही उन श्मशानों के बारे में भी आज आप जानेंगे, जहां अघोरी साधना करते हैं। 

श्मशान और अघोरियों का खास रिश्ता, जानिए इनसे जुड़ी खास बातें

- अघोरी गाय का मांस छोड़ कर बाकी सभी चीजें खाते हैं। मानव मल से लेकर मुर्दे का मांस तक। अघोरपंथ में श्मशान साधना का विशेष महत्व है, इसलिए वे श्मशान में रहना ही ज्यादा पंसद करते हैं। श्मशान में साधना करना शीघ्र फलदायक होता है। श्मशान में आमतौर पर लोग जाते नहीं, इसीलिए साधना में विघ्न पड़ने का कोई प्रश्न नहीं उठता। उनके मन से अच्छे-बुरे का भाव निकल जाता है, इसलिए वे प्यास लगने पर खुद का मूत्र भी पी लेते हैं।  

- अघोरियों के बारे में कई बातें प्रसिद्ध हैं, जैसे वे बहुत ही हठी होते हैं। अगर किसी बात पर अड़ जाएं तो उसे पूरा किए बगैर नहीं छोड़ते। गुस्सा हो जाएं तो किसी भी हद तक जा सकते हैं। अधिकांश अघोरियों की आंखें लाल होती हैं, जैसे वो गुस्से में हों, लेकिन उनका मन उतना ही शांत भी होता है। काले वस्त्रों में लिपटे अघोरी गले में धातु की बनी नरमुंड की माला पहनते हैं।

- अघोरी अक्सर श्मशानों में ही अपनी कुटिया बनाते हैं। वहां एक धूनी जलती रहती है। जानवरों में वो सिर्फ कुत्ता पालना पसंद करते हैं। उनके साथ उनके शिष्य रहते हैं। अघोरी अपनी बात के बहुत पक्के होते हैं। वे अगर किसी से कोई बात कह दें तो उसे जरूर पूरा करते हैं। 
श्मशान और अघोरियों का खास रिश्ता, जानिए इनसे जुड़ी खास बातें
- अघोरी मूलत: तीन तरह की साधना करते हैं। शिव साधना, शव साधना और श्मशान साधना। शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है। बाकी तरीके शव साधना की ही तरह होते हैं। इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पांव है। ऐसी साधनाओं में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाई जाती है। 

- शव और शिव साधना के अतिरिक्त तीसरी साधना होती है श्मशान साधना। इसमें आम परिवारजन भी शामिल हो सकते हैं। इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ की पूजा की जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यहां प्रसाद के रूप में मांस-मंदिरा की जगह मावा चढ़ाया जाता है।  

बहुत कम लोग जानते हैं कि अघोरियों की साधना में इतना बल होता है कि वो मुर्दे से भी बात कर सकते हैं। ये बातें पढ़ने-सुनने में भले ही अजीब लगें, लेकिन इन्हें पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता। उनकी साधना को कोई चुनौती नहीं दी जा सकती। 
श्मशान और अघोरियों का खास रिश्ता, जानिए इनसे जुड़ी खास बातें
- अघोरी अमूमन आम दुनिया से कटे  होते हैं। वे अपने-आप में मस्त रहने वाले, दिन में अधिकांश समय सोने वाले और रात में श्मशान में साधना करने वाले होते हैं। वे आम लोगों से कोई संपर्क नहीं रखते। वे अधिकांश समय अपना सिद्ध मंत्र ही जाप करते रहते हैं। आज भी ऐसे अघोरी और तंत्र साधक हैं, जो पराशक्तियों को अपने वश में कर सकते हैं। दुनिया में सिर्फ चार श्मशान घाट ही ऐसे हैं, जहां तंत्र क्रियाओं का परिणाम बहुत जल्दी मिलता है। ये हैं तारापीठ का श्मशान (पश्चिम बंगाल), कामाख्या पीठ (असम) का श्मशान, त्र्यम्बेक्शवर (नासिक) और उज्जैन का चक्रतीर्थ श्मशान।  
श्मशान और अघोरियों का खास रिश्ता, जानिए इनसे जुड़ी खास बातें
तारापीठ  - यह मंदिर पश्चिम बंगाल के वीरभूमि जिला में है। इसे तारा देवी का मंदिर कहते हैं। इस मंदिर में मां काली के एक रूप तारा मां की प्रतिमा स्थापित है। रामपुर हाट से तारापीठ की दूरी 6 किलोमीटर है। यहां स्थित श्मशान में कई साधक आते हैं। 

श्मशान और अघोरियों का खास रिश्ता, जानिए इनसे जुड़ी खास बातें
कामाख्या पीठ-  असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर कामाख्या मंदिर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है। इसका तांत्रिक महत्व है। प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है। पूर्वोत्तर के मुख्य द्वार कहे जाने वाले असम राज्य की राजधानी दिसपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलांचल अथवा नीलशैल पर्वतमाला पर स्थित मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुंड) स्थित है।
श्मशान और अघोरियों का खास रिश्ता, जानिए इनसे जुड़ी खास बातें
नासिक - त्र्यम्बेक्श्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर महाराष्ट्र के नासिक जिले में हैं। यहां के ब्रह्मगिरि पर्वत से गोदावरी नदी का उद्गम होता है। भगवान शिव को तंत्रशास्त्र का देवता माना जाता है। तंत्र और अघोरवाद के जन्मदाता भगवान शिव ही हैं। 
श्मशान और अघोरियों का खास रिश्ता, जानिए इनसे जुड़ी खास बातें
उज्जैन - महाकालेश्वर मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मध्यप्रदेश के उज्जैन में है। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव को अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। इस कारण तंत्रशास्त्र में भी शिव के इस शहर को शीघ्र फल देने वाला माना गया है। यहां के श्मशान में दूर-दूर से साधक तंत्र क्रिया करने आते हैं। 

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