Friday, 26 July 2013

द्वारिका

द्वारिका

भगवान श्री कृष्ण अपने यादव परिवारों सहित मथुरा छोडकर सुराष्ट्र (सौराष्ट्र) में आते है। प्रभुने अब अपना बसेरा इस पवित्र भूमि में ही रखने का सोचा है और इस इरादों से वे सौराष्ट्र के समुद्र तट पर घुम रहे थे। उन्हे वहाँ की भूमि से मानो अच्छा लगाव हो गया और अपनी राजधानी स्थल के लिये स्थलचयन कर दिया। फौरन विश्वकर्माजी से बुलाया गया और प्रभुने अपनी इच्छा प्रगट की। विश्वकर्माजीने समुद्र तट पर अपनी दृष्टि डालते हुऐ बताया कि स्थान तो अदभूत है। राजधानी यहीं पर ही बनाना ठीक रहेगा लेकिन भूमि-विस्तार कम पडेगा।

 ज्यादा भूमि के लिये समुद्र देवसे प्रार्थना की गई प्रभु कृष्णने खुद समुद्रदेवकी आराधना की और समुद्रदेवने तटविस्तार से अपनी सीमाको थोडा अंदर की और लेते हुए द्वारिकाके निर्माणका रास्ता खोल दिया। बारह जोजन की भूमि सागरमहाराजने अपने स्थान से हटकर द्वारिका के लिये समर्पित कर दी। फिर तो विश्वकर्मा प्रभुने श्रीकृष्ण द्वारा कल्पनातीत नगरीका निर्माण कर दिया। सुवर्णनगरी का नाम द्वारिका रखा गया। द्वारावती या कुशस्थलीनाम से उसे जाना जाता था।

और एक किवदंती अनुसार श्रीकृष्ण प्रभु जब अपने अंतिम दिनोंमें सोमनाथ के नजदिक आये भालकतिर्थमें एक पारघी के बाण से घायल होकर त्रिवेणीसंगम स्थल पर अपना देहोत्सर्ग किया, तब उनकी बनाई हुई द्वारिका समुद्रमें डूब गइ थी।

भारतिय संस्कृति के युगप्रवर्तक - श्रीकृष्ण की पाटनगरी द्वारका:

सिन्धुसागर याने अरबसागर पर बसी हुई द्वारका गुजरात राज्य के पश्चिम छौर पर आयी हुई है। भगवान श्री कृष्णसे जिसका नाम जुडा हुआ हो वैसा अति प्राचीन तिर्थधाम है। द्वारिका को मोक्षनगरी से जाना जाता है। इसलिये हिन्दु धर्मीयात्री यहाँ वर्षभर दर्शनार्थे भावसे आते रहते है। प्रभुश्री कृष्णने यहाँ अपना साम्राज्य काफि काल तक फैलाया था। अपने बाल सखा सुदामाजी से सुभग मिलन बेट द्वारिकामें हुआ था। प्रभु प्रेम की दीवानी मीराबाईने भी मेरे तो गीरधर गोपाल दूसरो ना कोइ रे गाते हुए अपने अंतिम श्वास इस तिर्थभूमि पर ही त्याग कर मोक्षमार्ग पर चल दिया था। श्रीकृष्ण के राज्यकालमें द्वारिका सुवर्ण की ही बनी हुइ थी जो कालांतर से समुद्रमें समा गई ऐसा माना जाता है। प्रभु के साम्राज्य की समाप्ति के बाद यहाँ गुप्तवंश, पल्लववंश और चालुक्यवंश के भिन्न भिन्न राजाओंने राज्य किया था।

गोमती नदी और सिन्धुसागर (अरबसमुद्र) के संगमस्थान पर खडी हुयी द्वारिका में अदभुत नयनरम्य और जगमशहूर है श्रीकृष्णका जगतमंदिर। इस को करीब २५०० साल पुराना माना गया है। १६० फुट की सतहवाला यह भव्यमंदिर पाँच-पाँच मंजिलो से शोभायमान है। किवदंती में बताया गया, द्वारिका मंदिर तो विश्वनाथ प्रभुने निमिषमात्र में - चौवीस घंटेमें – बना दिया था केकिन उसका अभी अस्तित्व कहाँ, अब जो मंदिर हम देखते है वह पत्थरो की गई शिल्पकलासे सभर है। आठ आठ खंभो पर टीका हुआ है मंदिर का गुंबज। मंदिर के बाहरकी दिवारें भी पत्थर से बनी हुई है और बाटीक शिल्पकला से सज्ज है। शुध्ध चांदीसे आवृत सिहासन पर प्रभु श्री कृष्ण की मूर्ति मंदिर के मुख्य गर्भगृहमें बिराजमान है। श्याम शिलामें से निर्माण की गई प्रभु की मूर्ति चतुर्भूजा है। बडी नयनरम्य और पवित्र मूर्ति है वह।

द्वारिका से दो किमी के अंतर पर प्रभु की पटरानी देवीजी का १६०० साल पुराना मंदिर है। स्थापत्यकला की गरिमापूर्ण कृतिसम निर्माण किया हुआ है यह मंदिर। समुद्र में करीब ३२ कि.मी. की दूरी पर बेट द्वारका आया हुआ है। यात्री बोटमें बैठकर वहाँ के प्राचीन मंदिर संकुल को देखने और अपनी श्रध्धाको पूराकरने वहाँ अवश्य जाते है।
 
नजदिकका भूमि मार्ग:

गांधीनगर से ४८१ कि.मी. 
राजकोट से २१७ कि.मी. 
अमदावाद से ४५० कि.मी. 
जामनगर से १४८ कि.मी. 
पोरबंदर से ७० कि.मी.


नजदिकका रेलवे स्थानक: 
द्वारका वाया राजकोट, जामनगर, पोरबंदर


नजदिकका हवाईमथक: जामनगर और पोरबंदर

संपर्क माहिती:
 
क्लेक्टरश्री, जामनगर और अध्यक्षश्री, द्वारका देवस्थान समिति, 
फोन 
(कार्यालय) (०२८८) २५५५८... 
(फेक्स) २५५५८९९
(निवास) २५५४०५९ 
(मो.) ९८२५०४९३३१
 
वहीवटदारश्री 
फोन नं. (०२८९२) 
(कार्यालय) २३४०८० 
(फेक्स) २३४५४१
 
ट्रस्ट का विश्रामगृह – द्वारकामें – २२३४०९०
 
मामलतदारश्री 
(कार्यालय) फेक्स २३४४४९

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