Friday, 26 July 2013

हिन्दू धर्म के पवित्र सोलह संस्कार

सोलह संस्कार


हिन्दू धर्म भारत का सर्वप्रमुख धर्म है। इसमें पवित्र सोलह संस्कार संपन्न किए जाते हैं। हिंदू धर्म की प्राचीनता एवं विशालता के कारण ही उसे 'सनातन धर्म' भी कहा जाता है। 

बौद्ध, जैन, ईसाई, इस्लाम आदि धर्मों के समान हिन्दू धर्म किसी भी व्यक्ति विशेष द्वारा स्थापित किया गया धर्म नहीं, बल्कि प्राचीन काल से चले आ रहे विभिन्न धर्मों एवं आस्थाओं का बड़ा समुच्चय है। महर्षि वेदव्यास के अनुसार मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक पवित्र सोलह संस्कार संपन्न किए जाते हैं। जो निम्नानुसार है :

1. गर्भाधान 
2. पुंसवन 
3. सीमंतोन्नायन 
4. जातक्रम 
5. नामकरण 
6. निष्क्रमण 
7. अन्नप्राशन 
8. चूड़ाकर्म 
9. कर्णवेध 
10. यज्ञोपवीत 
11. वेदारंभ 
12. केशांत 
13. समावर्तन 
14. विवाह 
15. आवसश्याधाम 
16. श्रोताधाम 

इस प्रकार हिन्दू धर्म के सोलह संस्कार किए जाते हैं।


सोलह संस्कार करनेके उद्देश्य

 भारतीय परंपराके अनुसार मनुष्यका प्रत्येक कृत्य संस्कारयुक्त होना चाहिए । सनातन धर्मने प्रत्येक जीवको सुसंस्कृत बनाने हेतु गर्भधारणासे विवाहतक प्रमुख सोलह संस्कार बताए हैं । इन संस्कारोंका उद्देश्य इस प्रकार है -

१. बीजदोष न्यून करने हेतु संस्कार किए जाते हैं ।
२. गर्भदोष न्यून करने हेतु संस्कार किए जाते हैं ।
३. पूर्वजन्मोंके दुष्कृत्योंके कारण देवता तथा पितरोंका शाप हो तो उनकी बाधा दूर करने हेतु तथा उनके ऋणसे मुक्त होनेके लिए एवं कुलदेवता, इष्टदेवता, मातृदेवता, प्रजापति, विष्णु, इंद्र, वरुण, अष्टदिक्पाल, सवितादेवता, अग्निदेवता आदि देवताओंको प्रसन्न कर उनके आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु संस्कार किए जाते हैं ।
४. बालक आरोग्यवान, बलवान तथा आयुष्यमान हो, इस हेतु संस्कार किए जाते हैं ।
५. बालक बुद्धिमान, सदाचारी, धर्मके अनुसार आचरण करनेवाला हो, इस हेतु संस्कार किए जाते हैं ।
६. अपने सत्कृत्य तथा धर्मपरायण वृत्तिसे आत्मोन्नति कर अपने वंशकी पूर्वकी बारह तथा आगेकी बारह पीढियोंका उद्धार करनेकी क्षमता बालकमें आए, इस हेतु संस्कार किए जाते हैं ।
७. स्वयंकी आध्यात्मिक उन्नति कर ब्रह्मलोक अथवा मोक्षप्राप्तिकी क्षमता अर्जित करने हेतु संस्कार किए जाते हैं ।
८. सनातन धर्मके अनुसार प्रत्येकका प्रत्येक कृत्य तथा उसपर किया गया प्रत्येक संस्कार परमेश्वरको प्रसन्न करने हेतु होता है; क्योंकि परमेश्वरकी कृपा होनेपर ही हमारा उद्देश्य पूर्ण हो सकता है ।
 ये सर्व संस्कार बालकके माता-पिता तथा गुरुको करना चाहिए ।

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