Thursday, 25 July 2013

नाग पंचमी

नाग पंचमी पर्व 

nagpanchami festival

भारत की अधिकतर जनसंख्या आज भी अपनी आजीविका के लिये कृ्षि पर आश्रित है. हमारे यहां पर पेड- पौधों की पूजा करने का विधान भी प्राचीन समय से चला रहा है. यही कारण है कि आज भी हर घर में तुलसी के पौधे की पूजा की जाती है. "वनोत्सव" जैसे पर्व हमारी संस्कृ्ति की पहचान है.

नाग पंचमी पर्व कृ्षि रक्षा पर्व 

हमारे यहां उन सभी वस्तुओं को विशेष महत्व दिया जाता है, जो वस्तुएं आजीविका से जुडी होती है. साथ ही कृ्षि प्रधान देश होने के कारण, कृ्षि को बचाने वाले या खेती में प्रयोग होने वाली सभी वस्तुओं को यहां पूजा जाता है. उदाहरण के लिये पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री कृ्ष्ण ने भी कहा है कि इन्द्र या अन्य देवों की पूजा करने के स्थान पर गाय, बैल और खेती के उपकरणों की पूजा की जानी चाहिए.

इसके बाद ही गौवर्धन पर्वत की पूजा का प्रसंग सामने आता है. पंचमी तिथि के देव के रुप मे नागों को मान्यता दी गई है. इसलिये पंचमी तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्तियों के लिये यह तिथि और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है.

चिकित्सा जगत में महत्व 

आधुनिकता की दौड में तकनीकि क्षेत्रों का विस्तार तो हुआ है, पर नाग पंचमी जैसे पर्वों की महत्वता में कोई कमी नहीं हुई है. बल्कि देखा जाये तो आज के संदर्भों में नागों को बचाना और भी तर्कसंगत लगता है. आज का चिकित्सा जगत काफी हद तक दवाईयों के निर्माण के लिये नागों से प्राप्त होने वाले जहर पर निर्भर है. इनके जहर की हलकी सी मात्रा ही कई लोगों का जीवन बचानें में सहयोग करती है. 

हिन्दू शास्त्रों में नाग पंचमी   

शास्त्रों के अनुसार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि का दिन नाग पंचमी के रुप में मनाया जाता है. इसके अलावा भी प्रत्येक माह की पंचमी तिथि के देव नाग देवता ही है. परन्तु श्रवण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी में नाग देवता की पूजा विशेष रुप से की जाती है. इस दिन नागों की सुरक्षा करने का भी संकल्प लिया जाता है. श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन नागपंचमी का पर्व प्रत्येक वर्ष पूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाया जाता है

नाग पूजन प्राचीन सभ्यताओं से साथ.   

नाग पंचमी के दिन नागों का दर्शन करना शुभ होता है. सर्पों को शक्ति व सूर्य का अवतार माना जाता है. हमारा देश धार्मिक आस्था और विश्वास का देश है. हमारे यहां सर्प, अग्नि, सूर्य और पितरों को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है. प्राचीन इतिहास की प्रमाणों को उठाकर देखे तो भी इसी प्रकार के प्रमाण हमारे सामने आते है.

इतिहास की सबसे प्राचीन सभ्यताएं जिसमें मोहनजोदडों, हडप्पा और सिंधु सभ्यता के अवशेषों को देखने से भी कुछ इसी प्रकार की वस्तुएं सामने आई है, जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है, कि नागों के पूजन की परम्परा हमारे यहां नई नहीं है. इन प्राचीन सभ्यताओं के अलावा मिस्त्र की सभ्यता भी प्राचीन सभ्यताओं में से एक है. यहां आज भी नाग पूजा को मान्यता प्राप्त है. शेख हरेदी नामक पर्व आज भी यहां सर्प पूजा से जुडा हुआ पर्व है. 

पुराणों में नागो को देवता मानने के प्रमाण        

पुराणों की एक कथा के अनुसार इस दिन नाग जाति का जन्म हुआ था. महाराजा परीक्षित को उनका पुत्र जनमेजय जब नाग तक्षक के काटने से नहीं बचा सका तो जनमेजय ने सर्प यज्ञ कर तक्षक को अपने सामने पश्चाताप करने के लिये मजबूर कर दिया. तक्षक के द्वारा क्षमा मांगने अर उन्हें क्षमा कर दिया. तथा यह कहा गया की श्रावण मास की पंचमी को जो जन नाग देवता का पूजन करेगा, उसे नाग दोष से मुक्ति मिलेगी.  

नाग- पंचमी में क्या न करें

नाग देवता की पूजा -उपासना के दिन नागों को दूध पिलाने का कार्य नहीं करना चाहिए. उपासक चाहें तो शिवलिंग को दूध स्नान करा सकता है. यह जानते हुए की दूध पिलाने से नागों की मृ्त्यु हो जाती है. ऎसे में उन्हें दूध पिलाने से अपने हाथों से अपने देवता की जान लेने के समान है. इसलिये भूलकर भी ऎसी गलती करने से बचना चाहिए. इससे श्रद्वा व विश्वास के शुभ पर्व पर जीव हत्या करने से बचा जा सकता है.                

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