Sunday, 28 July 2013

डाकोर

समयका स्वरूप अनंत है। हिन्दुधर्ममें सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग ऐसे चार युग प्रवाहों का वर्णन है। भगवान श्री कृष्ण का जीवनकाल द्वापरयुग के अन्तीम वर्षोमें बीताया। द्वापरयुग में ८,६४,००० वर्ष माने गये हैं। भगवान श्री कृष्ण का जन्म द्वापर के ८,३२,८७५वे साल के श्रावण के कृष्णपक्ष की ८मी और बुधवार के दिन रोहीणी नक्षत्र के समय पर हुआ। अवतारी पुरूष श्री कृष्णने अपनी आयु के १२५ साल १ माह और ५ दिन इस पृथ्वी पर बिताये। उनकी मृत्यु के बाद ही कलियुग का प्रवेश प्रारंभ हुआ। कलियुगमें चर्तुर्भूज प्रतिमा के रूपमे द्वारिका नगरी में रहा करते थे एसा जिक्र पुरानो से मिलता है।
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भगवान श्री कृष्ण अपने परमभक्त बोडानाजी के प्रति अति प्रसन्न थे। अपनी हथैलियाँमें तुलसी लेकर श्रीकृष्णको अर्पण करने हेतु बोडानाजी डाकोर से पैदल द्वारिका नियमित रूप से हरसाल जाते थे। उनकी वृध्धावस्था तक यहाँ सिलसिला चालु रहा, वयकी कमजोरी आगे बढने से बोडानाजी का द्वारिका जाना कठीन होने लगा, प्रभु तो अंतर्यामी थे भक्त के प्रेमी भी थे सोचकर सोचा चलो इस साल तुलसीपत्र स्वीकारने मैं ही खुद बोडानाजी के पास क्यो न चलु? प्रसन्न हुऐ प्रभु, और विक्रम संवत १२१२ (सन ११५६) कार्तिक सुद-१ (देव-दिवाली) के दिन वे द्वारिका से डाकोर में प्रगट हुए। प्रिय भक्त बोडानाजी से तुलसीपत्र डाकोरमें स्वीकार किये।

 कथा तो और आगे भी है कि प्रभुजब डाकोर आ रहे थे रास्ते में सुबह हुयी, सिमलज नाम के गाँव में। अश्वरथ वही रूकाये गये निमका पेड था, मुख प्रक्षालन और दंतघावन किया करना बाकी था। नीमकी डालको तोडकर दंतघावन (ब्रश) प्रभुने किया, कहते है वही निमके पेडकी जो डाली श्री कृष्णने पकडी थी वह डाली मीठी हो गई। पूरे नीमके वृक्षमें एक डाल-शाखा अब भी उसी जगा पर मीठी बनी हुई मिलती है। यह नीमका पेड डाकोर से उमरेठ जाने के मार्ग पर बिलेश्वर महादेव मंदिर में खडा है। भगवान तो डाकोर आ गये, द्वारिका वापिस जाने का भी नाम ही नही लेते थे। द्वारिका ले जाना चाहते थे गुगली-अंबाडी ब्राह्मणोने तय किया, कितना भी खर्च मूर्तिस्वरूपका देना पडे तो दे देंगे लेकिन प्रभु की मूर्तिको डाकोर से द्वारिका तो लाना ही है।
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 डाकोर में तय हुआ कि प्रतिमाके तुल्य के बराबर सोना रखा जाय भगवान की सुवर्ण तुला की जाय। एक पल्ले सोना की मुर्हुतो का ढेर और दूसरे पल्लेमें प्रभुप्रतिमा। प्रभुको तो वहाँ जाना ही नही था और ये पुजारी पीछे पड रहे थे। कितना भी सोना डालते रहे प्रभुका चमत्कार ऐसा चला कि प्रतिमावाला पल्लु उपर का उपर। बोडानाजी की पत्नी चमत्कार समज गयी, उन्होंने अपनी छोटी सवाबालकी नथ को धीरे से सुवर्णवाले रखा और प्रभु प्रतिमा प्रेम से नीचे आकर तुलाको समांतर किया। कहा जाता है कि सुवर्ण शिलाओंसे न तुलनेवाले प्रभुने मात्र तुलसीपत्र के सामने अपना वजन को कम कर देना भक्तप्रेममें मुनासिब माना। उन तुलास्थान अबभी गोमती तालाब पर प्रतिकृती से अस्तित्वमें है।

गोमती तालाब पर श्री रणछोडरायजी का मंदीरधाम डाकोर:

डाकोरधाम गोमती तालाब के तट पर बसा हैं। अभी का विद्यमान मंदिर सन १७७२ में बनाया गया है। अति सुंदर और कलात्मक शिल्पकृतिर्यासे संपन्न यह मंदिर अति विशाल है। यहाँ पुराने जमाने में श्रीकृष्ण के परमभक्त बोडाना रहा करते थे, जैसा आगे बताया गया, बोडानाजी की प्रार्थना सुनकर प्रभु द्वारिकासे डाकोर में प्रतिमारूप बनकर आ गये थे तभी से प्रभु यहाँ रणछोडरायजी के नामसे पूजे जाते हैं। हर महिने की पूर्णिमा को यहाँ हजारों की संख्या यात्री जय रणछोड के ध्वनिके साथ धजा लेकर आ पहुँचते हैं। साल में एकबार हर फाल्गुन पूर्णिमां पर यहाँ बहुत बडा मेला लगता है।
 

नजदिकका भूमि मार्ग:
गांधीनगर से डाकोर १२५ कि.मी.
बडोदरा से डाकोर १०४ कि.मी.
अहमदाबाद से डाकोर ९५ कि.मी.
आणंद से डाकोर ३५ कि.मी.


नजदिकका रेलवे स्थानक:
आणंद और बडोदरा-नडियाद


नजदिकका हवाईमथक: बडोदरा-अहमदाबाद

संपर्क माहिती:
 
क्लेक्टरश्री खेडा-नडीयाद: अध्यक्षश्री - डाकोर विकास समिति फोन नं. (०२६८)
कार्यालय २५५०८५९
फेक्स २५५२२१०
घर २५५६७००
मोबाइल ९८२५०४९११४
 
अध्यक्षश्री: डाकोर टेम्पल ट्रस्ट २० ब्रह्मक्षत्रिय सोसायटी, पालडी, अहमदाबाद
निवास फोन : ६७७९५२१
 
मेनेजरश्री डाकोर टेम्पल ट्रस्ट: फोन नं ०२६९९ (कार्यालय) २४४४९१
 
नायब क्लेक्टरश्री नडीयाद (मो) ९८२५० ७९४९४
 
डाकोर नगरपालिका - २४५०३४
टेलि. फेक्स २४४६३४
 
मामलतदारश्री (ओ.) २२२६५९

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