Sunday, 28 July 2013

संत धारा

दस नाथ:
आदिनाथ, आनंदिनाथ, करालानाथ, विकरालानाथ, महाकाल नाथ, काल भैरव नाथ, बटुक नाथ, भूतनाथ, वीरनाथ और श्रीकांथनाथ। इनके बारह शिष्य थे जो इस क्रम में है- नागार्जुन, जड़ भारत, हरिशचंद्र, सत्यनाथ, चर्पटनाथ, अवधनाथ, वैराग्यनाथ, कांताधारीनाथ, जालंधरनाथ और मालयार्जुन नाथ।
चौरासी और नौ नाथ परम्परा : आठवी सदी में 84 सिद्धों के साथ बौद्ध धर्म के महायान के वज्रयान की परम्परा का प्रचलन हुआ। ये सभी भी नाथ ही थे। सिद्ध धर्म की वज्रयान शाखा के अनुयायी सिद्ध कहलाते थे। उनमें से प्रमुख जो हुए उनकी संख्या चौरासी मानी गई है। 

नाथ गुरु : 1.मच्छेंद्रनाथ 2.गोरखनाथ 3.जालंधरनाथ 4.नागेश नाथ 5.भारती नाथ 6.चर्पटी नाथ 7.कनीफ नाथ 8.गेहनी नाथ 9.रेवन नाथ। इसके अलावा ये भी हैं: 1. आदिनाथ 2. मीनानाथ 3. गोरखनाथ 4.खपरनाथ 5.सतनाथ 6.बालकनाथ 7.गोलक नाथ 8.बिरुपक्षनाथ 9.भर्तृहरि नाथ 10.अईनाथ 11.खेरची नाथ 12.रामचंद्रना

ओंकार नाथ, उदय नाथ, सन्तोष नाथ, अचल नाथ, गजबेली नाथ, ज्ञान नाथ, चौरंगी नाथ, मत्स्येन्द्र नाथ और गुरु गोरक्षनाथ। सम्भव है यह उपयुक्त नाथों के ही दूसरे नाम है। बाबा शिलनाथ, दादाधूनी वाले, गजानन महाराज, गोगा नाथ, पंढरीनाथ और साईं बाब को भी नाथ परंपरा का माना जाता है। उल्लेखनीय है कि भगवान दत्तात्रेय को वैष्णव और शैव दोनों ही संप्रदाय का माना जाता है, क्योंकि उनकी भी नाथों में गणना की जाती है। भगवान भैरवनाथ भी नाथ संप्रदाय के अग्रज माने जाते हैं।

B) वैष्णव संप्रदाय : 
वैष्णव भगवान विष्णु और उनके अवतारों को मानने वालों का संप्रदाय है। इसे भागवत संप्रदाय भी कहते हैं। मुख्यत: ईश्वर के अलावा ये लोग, विष्णु, राम और कृष्ण के भक्त होते हैं। इसलिए इसके मुख्यत: तीन विभाजन है कृष्णनामी, रामनामी और नारायण। इनका मूल जाप मंत्र है: 'श्रीमन नारायण, नायायण हरि हरि। भजमन नारायण नारायण हरि हरि' और इसके अलावा ये 'हरे रामा हरे कृष्णा' का भी जाप करते हैं।

वैष्णव संप्रदाय के संतों के नाम के आगे महर्षि या स्वामी और नाम के अंत में आचार्य का प्रयोग होता है, जैसे महर्षि वल्लभाचार्य और स्वामी रामानंदाचार्य। वैष्णव सम्प्रदाय के अनेकों उप संप्रदाय भी हो चले हैं उनमें प्रमुख हैं- 1.वल्लभ 2.रामानंद 3.माधव 4.बैरागी, 5.दास 6.निम्बार्क, 7.गौड़ीय, 8.श्री संप्रदाय आदि। इसमें बैरागी और रामानंद का संप्रदाय ही अधिक प्रसिद्ध है।

विष्णु के भक्त श्वेत वस्त्र पहनते, सिर मुँड़ाकर रखते, जबकि दसनामी जटाएँ धारण करते हैं। दसनामियों की तरह वैष्णवों के भी कई मठ है। सीता और राम के भक्त तुलसी के 108 मनकों की अपनी माला, तीन कोनों वाली लाठी और ललाट पर दो सफेद और एक ऊर्ध्वाकार धारियों से पहचाने जाते हैं। राधाकृष्ण के भक्त ललाट पर नाल के आकार की सफेद या काली धारी बनाते थे और गले में एक ही तुलसी की माला पहनते थे।


अखाड़े : जूना अखाड़ा, अग्नि अखाड़ा, आह्वान अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा एवं अटल अखाड़ा। वैष्णवों में बैरागी, उदासीन, रामादंन और निर्मल अखाड़ा।

दर्जा : हर मठ, अणि, नाथ के अनुयायियों के बीच प्रत्येक साधु को उसकी आध्यात्मिक उपलब्धियों के मुताबिक दर्जा प्राप्त है। नौसिखुआ से लेकर अवधूत और परमहंस तक। पूरे देश में मुश्किल से 10 या 12 परमहंस होंगे। पिछले सौ वर्षों में सबसे महान परमहंस थे दक्षिणेश्वर के संत रामकृष्ण। परमहंस से ऊपर भगवान होते हैं। भगवान से ऊपर ईश्वर की सत्ता मानी गई है।

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