।। या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रुपेण संस्थिता ।।
मंदिरको नष्ट करने और उसमें से द्रव्य की लूंट करने की भी परंपरा रही है। सर्व प्रथम मॉगोल सरदार महंमद गजनवीने इ.स. १०२६ में और अल्लाउद्दीन खिलजी के सरदार अफजलर्खा ने बारी बारी १३७४, १३९० में १४५१, १५९०, १५२० में अन्यों ध्वारा लूट का कहर चलाया गया आखिर आखिर में औरंगजेबने भी उसमें लूंट चलाई थी। कुल मिलाकत १७ बार इस मंदिर को तोडा या लूंट गया।
जब सोमनाथ मंदिरका नवनिर्माणका कार्य शुरू किया गया तो उत्खनन करते समय करीब १३ फूट की खुदाई में नीचे की निवसे कुछ शिल्प अवशेष पाये गये। मैत्रीक काल से लेकर सोलंकी युग तक के शिल्प स्थापत्य के उत्कृष्ठ अवशेष उनमे शामिल है। जिन में मुख्यत: शिव, त्रिपुरातकेश्वर, नटराज, भैख, योग, आदि की मूर्तिर्यां के अवशेष अधिकनोंधपात्र माने जाते है। आर्यावर्तमें बारह ज्योर्तिलिंगमे यह है सर्वप्रथम क्रममें।
सौराष्ट्र सोमनाथं च से शुरू ध्वादश ज्योर्तिलींगोमें सोमनाथ का उल्लेख सर्व प्रथम होता रहा है। सौराष्ट्र के सिन्धुसागर (अरब समुद्र) के किनारे पर यह जगप्रसिध्ध सोमनाथ महादेव यात्राधाम आया हुआ है। हिन्दुओंका विशेष महत्व यात्राधाम जहाँ पर सोमनाथ के लिंग का आर्विभाव पृथ्वी की उत्पति के साथ ही हुआ था एसा माना जाता है। पुरानों में बताये कथानक के अनुसार सोम याने चंद्रने, दक्षप्रजापति राजाकी २७ कन्याओं से विवाह किया था। इन २७ कन्याओंको अपनी पत्नी बनायी थी। लेकिन उनमें से रोहिणी नामक अपनी पत्नी पर प्यार अधिक था। उसे वह ज्यादा सन्मान दिया करता था।
शेष कन्याओंने इस शिकायत अपने राजा-पिता दक्षप्रजापति से बडे विरोध के साथ कर दीया। अपनी अन्य कन्याओं पर होता हुआ अन्याय पिता दक्षके लिये सहन करना मुश्किल हो गया। अत: गुस्सेमें आकर दक्षराजाने चंद्र याने सोम को शाप दे दिया कि अबसे हरदिन तुम्हारा तेज (क्रांति) क्षिण होता रहेगा। फलस्वरूप हर दूसरे दिन चंद्रका तेज घटने लगा। शापसे विचलित और दु:खी सोमने भगवान शिव की घोर आराधना शूरू कर दी। क्योंकि चंद्र की क्षिणतासे पृथ्वी पर भी उसका विघातक प्रभाव पड रहा था। लोग भी त्रस्त हो रहे थे।
सोम-चंद्र के श्राप का निवारण किया। सोम के कष्टको दूर करनेवाले प्रभु शिवका स्थापन यहाँ करवाकर उनका नामकरण हुआ सोमनाथ-। वर्तमानकाल में शिवलिंग के दर्शन होते है वह लिंग चंद्र की भक्ति से प्रसन्न हुए प्रभु शिवजी के प्रतिक रूप है। समयांतर पर यहाँ आये हुए सोमनाथ मंदिर को इंदोर की महारानी अहल्याबाई होलकर ध्वारा पुन:निर्मित-जिर्णोध्धार करवाया गया था। दशवी शताब्दिं में मंदिर का प्रभाव चोटी पर था, उसकी सुवर्ण घंटा, गुंबज और छ्त, दिवारे और ध्वारा सब सुवर्ण जडीत थे – महंमद गजनवीने इस मंदिर में लूंट चलाने हेतु सोमनाथ पर कईबार हल्ला बोला था। और सुवर्ण की लूंट चलाकर काबूल-मोंगोल चला गया था। मंदिरका दबदबा बडा भारी रहा था अब जो मंदिर नव निर्मित खडा है उसे उभारनेमें हमारे देश के लोहपुरूष सरदार पटेल ध्वारा प्रतिज्ञापूर्ण प्रयत्नो की फलश्रुति है। प्राचिन मंदिर के भी दर्शन नजदिकमें मिलते है।
नजदिकका भूमि मार्ग:
राजकोट से १८१ कि.मी.
अमदावाद से ४०९ कि.मी.
जुनागढ से ७९ कि.मी.
केशोद ४१ कि.मी.
वेरावल से ८ कि.मी.
नजदिकका रेलवे स्थानक:
वेरावल
नजदिकका हवाईमथक: दिव और केशोद
संपर्क माहिती:
अध्यक्षश्री श्री सोमनाथ टेम्पल ट्रस्ट, सेक्टर नं. १९-क - १२
कार्यालय: २३२५४८९४
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सभ्य सचिवश्री सोमनाथ टेम्पल ट्रस्ट श्री सोमनाथ निवास, सी-१२-ए,
श्री ओमविला, सरकारी गुदामके नजदिक,
घोडा केम्पस रोड, शाहीबाग, अमदावाद,
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(मो.) ९८२५०३६०१
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